हमारे लिए प्रेरक वाक्य " जब मानव और मानवता दुख से जल रही हो, तो क्या तुम सो सकते हो। अरे! मृत्यु जब अवश्यसंभावी है तो कीट-पतंगों की तरह मरने के बजाय वीर की तरह मर जाना अच्छा है। इस अनित्य संसार में दो दिन अधिक जीवित रहकर भी क्या लाभ? जरा-जीर्ण होकर थोडा-थोडा करके क्षीण होते हुये मरने के बजाय वीर की तरह दूसरों के अल्प कल्याण के लिए भी लड़ कर उसी समय मर जाना क्या अच्छा नहीं है।" -स्वामी विवेकनन्द |
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