एक और लावारिस लाश का अन्तिम संस्कार

आजमगढ़ । कल स्थानीय राजघाट पर भारत रक्षा दल कार्यकर्ताओं द्वारा एक और लावारिस लाश का अंतिम संस्कार किया गया । इस को शामिल करते हुए अब तक 34 लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार किया जा चुका है । घाट पर हरिकेश विक्रम, प्रवीण गौड़ , रवि प्रकाश आदि मौजूद थे ।

भारद के सहयोग से निशुल्क ई-पहचान पत्र

भारद के सहयोग से निशुल्क ई-पहचान पत्र
आजमगढ़ : भारत रक्षा दल के सहयोग से आइआरडीए की बीमा भंडारण प्रणाली के अंतर्गत बनने वाले ई-पहचान पत्र जो बीमा संबंधी कार्यो में इस्तेमाल होने हैं, की शुरुआत निशुल्क ई-पहचान पत्र केंद्र के रूप में जिले के घोरठ (आरटीओ कार्यालय) के पास भारद जिलाध्यक्ष उमेश सिंह ने किया। इस योजना के अंतर्गत केंद्र पर लोगों का निशुल्क इंश्योरेंस एकाउंट खोला जाएगा। इसके लिए यह अनिवार्य होगा कि आवेदक भारतीय नागरिक हो, उम्र 18 वर्ष से कम न हो तथा पैन या आधार कार्ड धारक हो। इस अवसर पर जागृति के अध्यक्ष अमित सिंह ने लोगों को योजना की जानकारी दी। कार्यक्रम के दौरान जागृति के वीरेंद्र सिंह व्यवस्थापक, प्रवीण सिंह, दिनेश सिंह तथा कार्यवाहक प्रदीप चौहान, महेंद्र चौहान, सुनील चौहान, चंदन सिंह, इंद्रेश यादव, गोविंदा, धनंजय यादव, संजय चौहान, रणजीत सिंह, प्रदीप यादव, धर्मवीर शर्मा, रामाशीष वकील, अनिल तिवारी आदि उपस्थित थे।

निर्माण में धांधली को लेकर किया प्रदर्शन

निर्माण में धांधली को लेकर किया प्रदर्शन
आजमगढ़ : बेलइसा मंडी में हो रहे निर्माण कार्य में धांधली को लेकर भारत रक्षा दल के कार्यकर्ता आंदोलित हैं। कार्यकर्ताओं ने सोमवार को जिलाधिकारी कार्यालय पर प्रदर्शन किया और जांच की मांग की। जिलाधिकारी श्रीमती नीना शर्मा ने कार्यकर्ताओं को जांच का आश्वासन दिया।
कार्यकर्ताओं का आरोप है कि बेलइसा मंडी परिसर में जारी निर्माण में घटिया सामग्री लगाई जा रही हैं। बिल्डिंगों के छत से पानी टपक रहा है। किसी बिल्डिंग का छत टेढ़ा है तो किसी का लटक गया है। शिकायत करने वालों की कोई सुनवाई नहीं हो रही है। रविवार को भारत रक्षा दल के कार्यकर्ता वहां पहुंचे और संबंधित जेई से बात की तो जवाब मिला कि जो हो रहा है सब ठीक हो रहा है। इसी तरह कार्य होता है। इसे लेकर आक्रोशित भारत रक्षा दल के कार्यकर्ताओं ने जिलाधिकारी कार्यालय पर प्रदर्शन किया और किसी उच्चाधिकारी से जांच की मांग की। इस अवसर पर रणजीत सिंह, प्रदीप, धर्मवीर, शंभूदयाल, महेंद्र चौहान आदि थे।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस

साथियों 

हर वर्ष के भांति , इस वर्ष भी भारत रक्षा दल नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जयन्ती आगामी २३ जनवरी २०१४ को सुबह दस से मेहता पार्क में मनायेगा , आप सभी आमंत्रित है ...


सुभाषचन्द्र बोस भारतीय इतिहास के ऐसे युग पुरुष हैं जिन्होंने आजादी की लड़ाई को एक नया मोड़ दिया था. भारत को आजाद कराने में नेताजी सुभाषचंद्र बोस की भूमिका काफी अहम थी. अपनी विशिष्टता तथा अपने व्यक्तित्व एवं उपलब्धियों की वजह से सुभाष चन्द्र बोस भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं. स्वाधीनता संग्राम के अन्तिम पच्चीस वर्षों के दौरान उनकी भूमिका एक सामाजिक क्रांतिकारी की रही और वे एक अद्वितीय राजनीतिक योद्धा के रूप में उभर के सामने आए. नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा में कटक के एक संपन्न बंगाली परिवार में हुआ था। बोस के पिता का नाम 'जानकीनाथ बोस' और माँ का नाम 'प्रभावती' था। जानकीनाथ बोस कटक शहर के मशहूर वक़ील थे। प्रभावती और जानकीनाथ बोस की कुल मिलाकर 14 संतानें थी, जिसमें 6 बेटियाँ और 8 बेटे थे। सुभाष चंद्र उनकी नौवीं संतान और पाँचवें बेटे थे। अपने सभी भाइयों में से सुभाष को सबसे अधिक लगाव शरदचंद्र से था। 

नेताजी ने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई कटक के रेवेंशॉव कॉलेजिएट स्कूल में हुई। तत्पश्चात् उनकी शिक्षा कलकत्ता के प्रेज़िडेंसी कॉलेज और स्कॉटिश चर्च कॉलेज से हुई, और बाद में भारतीय प्रशासनिक सेवा (इण्डियन सिविल सर्विस) की तैयारी के लिए उनके माता-पिता ने बोस को इंग्लैंड के केंब्रिज विश्वविद्यालय भेज दिया। अँग्रेज़ी शासन काल में भारतीयों के लिए सिविल सर्विस में जाना बहुत कठिन था किंतु उन्होंने सिविल सर्विस की परीक्षा में चौथा स्थान प्राप्त किया |
1921 में भारत में बढ़ती राजनीतिक गतिविधियों का समाचार पाकर  बोस ने अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली और शीघ्र भारत लौट आए। सिविल सर्विस छोड़ने के बाद वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ जुड़ गए।  भारत आकर वे देशबंधु चितरंजन दास के सम्पर्क में आए और उन्होंने उनको अपना गुरु मान लिया और कूद पड़े देश को आजाद कराने. चितरंजन दास के साथ उन्होंने कई अहम कार्य किए जिनकी चर्चा इतिहास का एक अहम हिस्सा बन चुकी है. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान सुभाष चन्द्र बोस की सराहना हर तरफ हुई. देखते ही देखते वह एक महत्वपूर्ण युवा नेता बन गए. पंडित जवाहरलाल नेहरू के साथ सुभाषबाबू ने कांग्रेस के अंतर्गत युवकों की इंडिपेंडेंस लीग शुरू की. सुभाष चंद्र बोस महात्मा गांधी के अहिंसा के विचारों से सहमत नहीं थे।
 वास्तव में महात्मा गांधी उदार दल का नेतृत्व करते थे, वहीं सुभाष चंद्र बोस जोशीले क्रांतिकारी दल के प्रिय थे। महात्मा गाँधी और सुभाष चंद्र बोस के विचार भिन्न-भिन्न थे लेकिन वे यह अच्छी तरह जानते थे कि महात्मा गाँधी और उनका मक़सद एक है, यानी देश की आज़ादी। सबसे पहले गाँधीजी को राष्ट्रपिता कह कर नेताजी ने ही सम्बोधित किया |
1938 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष निर्वाचित होने के बाद उन्होंने राष्ट्रीय योजना आयोग का गठन किया। यह नीति गाँधीवादी आर्थिक विचारों के अनुकूल नहीं थी।  1939 में बोस पुन एक गाँधीवादी प्रतिद्वंदी को हराकर विजयी हुए।  गांधी ने इसे अपनी हार के रुप में लिया।  उनके अध्यक्ष चुने जाने पर गांधी जी ने कहा कि बोस की जीत मेरी हार है और ऐसा लगने लगा कि वह कांग्रेस वर्किंग कमिटी से त्यागपत्र दे देंगे।  गाँधी जी के विरोध के चलते इस विद्रोही अध्यक्षने त्यागपत्र देने की आवश्यकता महसूस की।  गांधी के लगातार विरोध को देखते हुए उन्होंने स्वयं कांग्रेस छोड़ दी। 

3 मई 1939 को सुभाषचन्द्र बोस ने कलकत्ता में फॉरवर्ड ब्लाक अर्थात अग्रगामी दल की स्थापना की. सितम्बर 1939 में द्वितीय विश्व युद्व प्रांरभ हुआ. बोस का मानना था कि अंग्रेजों के दुश्मनों से मिलकर आज़ादी हासिल की जा सकती है। ब्रिटिश सरकार ने सुभाष के युद्ध विरोधी आन्दोलन से भयभीत होकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया. सन् 1940 में सुभाष को अंग्रेज सरकार ने उनके घर पर ही नजरबंद कर रखा था. नेताजी अदम्य साहस और सूझबूझ का परिचय देते हुए सबको छकाते हुए घर से भाग निकले.वह अफगानिस्तान और सोवियत संघ होते हुए जर्मनी जा पहुंचे।
सक्रिय राजनीति में आने से पहले नेताजी ने पूरी दुनिया का भ्रमण किया। वह 1933 से 36 तक यूरोप में रहे। यूरोप में यह दौर था हिटलर के नाजीवाद और मुसोलिनी के फासीवाद का। नाजीवाद और फासीवाद का निशाना इंग्लैंड था, जिसने पहले विश्वयुद्ध के बाद जर्मनी पर एकतरफा समझौते थोपे थे। वे उसका बदला इंग्लैंड से लेना चाहते थे। भारत पर भी अँग्रेज़ों का कब्जा था और इंग्लैंड के खिलाफ लड़ाई में नेताजी को हिटलर और मुसोलिनी में भविष्य का मित्र दिखाई पड़ रहा था। दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है। उनका मानना था कि स्वतंत्रता हासिल करने के लिए राजनीतिक गतिविधियों के साथ-साथ कूटनीतिक और सैन्य सहयोग की भी जरूरत पड़ती है। 

सुभाष चंद्र बोस ने 1937 में अपनी सेक्रेटरी और ऑस्ट्रियन युवती एमिली से शादी की। उन दोनों की एक अनीता नाम की एक बेटी भी हुई जो वर्तमान में जर्मनी में सपरिवार रहती हैं |
नेताजी हिटलर से मिले। उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत और देश की आजादी के लिए कई काम किए। उन्होंने 1943 में जर्मनी छोड़ दिया। वहां से वह जापान पहुंचे। जापान से वह सिंगापुर पहुंचे। जहां उन्होंने कैप्टन मोहन सिंह द्वारा स्थापित आज़ाद हिंद फ़ौज की कमान अपने हाथों में ले ली। उस वक्त रास बिहारी बोस आज़ाद हिंद फ़ौज के नेता थे। उन्होंने आज़ाद हिंद फ़ौज का पुनर्गठन किया। महिलाओं के लिए रानी झांसी रेजिमेंट का भी गठन किया जिसकी लक्ष्मी सहगल कैप्टन बनी। 

'नेताजी' के नाम से प्रसिद्ध सुभाष चन्द्र ने सशक्त क्रान्ति द्वारा भारत को स्वतंत्र कराने के उद्देश्य से 21 अक्टूबर, 1943 को 'आज़ाद हिन्द सरकार' की स्थापना की तथा 'आज़ाद हिन्द फ़ौज' का गठन किया इस संगठन के प्रतीक चिह्न पर एक झंडे पर दहाड़ते हुए बाघ का चित्र बना होता था। नेताजी अपनी आजाद हिंद फौज के साथ 4 जुलाई 1944 को बर्मा पहुँचे। यहीं पर उन्होंने अपना प्रसिद्ध नारा, "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा" दिया। 

कभी नकाब और चेहरा बदलकर अंग्रेजों को धूल चटाने वाले नेताजी की मौत भी बड़ी रहस्यमयी तरीके से हुई. द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान की हार के बाद नेताजी को नया रास्ता ढूंढ़ना जरूरी था. उन्होंने रूस से सहायता मांगने का निश्चय किया था. 18 अगस्त, 1945 को नेताजी हवाई जहाज से मंचूरिया की तरफ जा रहे थे. इस सफर के दौरान वे लापता हो गए. इस दिन के बाद वे कभी किसी को दिखाई नहीं दिए. 23 अगस्त, 1945 को जापान की दोमेई खबर संस्था ने दुनिया को खबर दी कि 18 अगस्त के दिन नेताजी का हवाई जहाज ताइवान की भूमि पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था और उस दुर्घटना में बुरी तरह से घायल होकर नेताजी ने अस्पताल में अंतिम सांस ली. लेकिन आज भी उनकी मौत को लेकर कई शंकाए जताई जाती हैं.

नेताजी की सूझबूझ और साहस का सानी इतिहास में कोई नहीं मिलता. उनमें साहस और बुद्धि दोनों का मेल था. एक बेहद बुद्धिमान दिमाग की वजह से ही वह इतने प्रभावशाली थे कि अंग्रेजों ने उन्हें देखते ही खत्म करने का निर्णय लिया था. नेताजी का योगदान और प्रभाव इतना बडा था कि कहा जाता हैं कि अगर आजादी के समय नेताजी भारत में उपस्थित रहते, तो शायद भारत एक संघ राष्ट्र बना रहता और भारत का विभाजन होता. हमारे वीर महापुरुषों ने अपने प्राणों की आहुति देकर देश की एकता, अखण्डता को कायम रखा जिसके लिए आने वाली पीढ़ी उनके योगदान को हमेशा याद रखेगी|